- स्थायीभाव - घृणा (जुजुप्सा)
- आलम्बन विभाव - रक्त, मांस, पीब, फूहड़पन आदि घृणित वस्तुएँ
- उद्दीपन विभाव - घृणित वस्तु, दुर्गन्ध आदि
- अनुभाव - थूकना, मुँह बिगाड़ना, रोमांच आदि
- संचारी भाव - मूर्च्छा, आवेग, असूया, मोह, व्याधि मरण आदि
सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत।
गिद्ध जाँघ कहँ खोदि-खोदि कै मांस उचारत।
श्वान अंगुरिन काटि-काटि कै खात निकारत।
बहु चील नोचि लै जात तुच, मोद मढ़यो सबको हियो।
मनु ब्रह्भोज जिजमान कोउ, आज भिखारिन कहँ दियो॥
अच्छा है।
जवाब देंहटाएंKabho palak
जवाब देंहटाएं