दोहा (Doha) एक मात्रिक छन्द है। यह एक अर्द्ध सम छन्द है तथा इसके पहले तथा तीसरे चरणों में तेरह-तेरह मात्राएँ एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। पहले तथा तीसरे चरणों के अन्त में यति एवं दूसरे तथा चौथे चरणों के अन्त में गुरु लघु होना अनिवार्य होता है।
उदाहरण -
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुन इठलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय॥
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