प्रेम की दो अवस्थाएँ मानी गई हैं - पहला संयोग और दूसरा वियोग। अतः श्रृंगार रस (Shringar Ras) के भी दो प्रकार हैं - पहला संयोग श्रृंगार और दूसरा वियोग श्रृंगार।
संयोग श्रृंगार
नायक और नायिका का एक दूसरे से मिलन संयोग श्रृंगार को जन्म देता है। संयोग श्रृंगार में नायक तथा नायिका के प्रेमपूर्ण विविध क्रियाकलापों, जैसे कि मिलन, दर्शन, वार्तालाप आदि, का वर्णन होता है।
- स्थायीभाव - रति
- आलम्बन विभाव- नायक और नायिका - दोनों एक दूसरे के आलम्बन होते हैं।
- उद्दीपन विभाव - रूप, सौन्दर्य, श्रृंगार, चेष्टाएँ, चांदनी रात, एकान्त स्थान, रमणीय वातावरण आदि।
- अनुभाव - एक दूसरे को देखना, प्रेमालाप, कटाक्ष, आलिंगन, स्वेद, अश्रु, रोमांच, कम्प आदि।
बतरस लालच लाल की मुसली धरी लुकाई।
सौंह करै भौहनि हँसै दैन कहइ नट जाइ॥
वियोग श्रृंगार
नायक नायिका का परस्पर वियोग वियोग श्रृंगार को जन्म देता है। इसमें अन्य भाव संयोग श्रृंगार की भाँति ही होते हैं।
उदाहरण -
हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी। तुम देखी सीता मृगनैनी॥
nice
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम 👌
जवाब देंहटाएंViyog wale ka matlab bata do koi
जवाब देंहटाएंBhai mere jb luv story me koi darar ajaati hai to viyog shringaar ras hota hai
हटाएंBichhadne KO viyog kahte h
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंNice beta
जवाब देंहटाएंIska earth btao
जवाब देंहटाएंस्पष्टीकरण दिया ही नहीं
जवाब देंहटाएंस्पष्टीरण भी दीजिए ।
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