गीतिका (Hindi Poetry - Geetika)
गीतिका (Geetika) छब्बीस मात्राओं का मात्रिक छन्द होता है। चौदह और बारह मात्राओं पर यति तथा अन्त में लघु गुरु होता है।
उदाहरण -
धर्म के मग में अधर्मी से कभी डरना नहीं।
चेतकर चलना कुमारग में कदम धरना नहीं।
शुद्ध भावों में भयानक भावना भरना नहीं।
ज्ञानवर्धक लेख लिखने में कमी करना नहीं॥
तोमर (Hindi Poetry - Tomr)
तोमर (Tomr) छन्द प्रत्येक चरण में बारह मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु लघु होता है।
उदाहरण -
तब चले बान कराल। फुँकरत जनु बहु ब्याल॥
कोपेउ समर श्रीराम। चले विशिख निसित निकाम॥
रस छंद अलंकार
मंगलवार, 16 दिसंबर 2014
सोमवार, 15 दिसंबर 2014
हरिगीतिका और बरवै
हरिगीतिका (Hindi Poetry - Harigeetika)
हरिगीतिका (Harigeetika) अट्ठाइस मात्राओं का छन्द होता है। सोलह और बारह मात्राओं पर यति होती है तथा अन्त में लघु गुरु होता है।
उदाहरण -
इस भाँति जब शोकार्त जननी को विलोका राम ने।
कहते हुए यों वर वचन दी सान्त्वना भगवान ने।
जो सुवन निज माता पिता की उचित सेवा कर सका।
निज त्याग श्रद्धा भाव से मानस न जिसका भर सका॥
बरवै (Hindi Poetry - Barwai)
बरवै (Barwai) के प्रथम और तृतीय चरण में बारह-बारह मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में सात-सात मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण -
चम्पक हरवा अंग मिलि, अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हलाय॥
हरिगीतिका (Harigeetika) अट्ठाइस मात्राओं का छन्द होता है। सोलह और बारह मात्राओं पर यति होती है तथा अन्त में लघु गुरु होता है।
उदाहरण -
इस भाँति जब शोकार्त जननी को विलोका राम ने।
कहते हुए यों वर वचन दी सान्त्वना भगवान ने।
जो सुवन निज माता पिता की उचित सेवा कर सका।
निज त्याग श्रद्धा भाव से मानस न जिसका भर सका॥
बरवै (Hindi Poetry - Barwai)
बरवै (Barwai) के प्रथम और तृतीय चरण में बारह-बारह मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में सात-सात मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण -
चम्पक हरवा अंग मिलि, अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हलाय॥
रोला और कुण्डलिया (Hindi Poetry - Rola and Kundalia)
रोला (Hindi Poetry - Rola)
रोला (Rola) चौबीस मात्राओं वाला छन्द है। ग्यारह और तेरह मात्राओं पर यति होती है।
उदाहरण -
शशि बिन सूनी रैन, ज्ञान बिन हिरदय सूनो।
घर सूनो बिन पुत्र, पत्र बिन तरुवर सूनो।
गज सूनो इक दन्त, और वन पुहुप विहूनो।
द्विज सूनो बिन वेद, ललित बिन सायर सूनो॥
कुण्डलिया (Hindi Poetry - Kundalia)
कुण्डलिया (Kundalia) छः चरणों का छन्द होता है जो एक दोहा और दो रोला को मिलाकर बनता है। दोहे का चौथा चरण पहले रोले का पहला चरण होता है। जिस शब्द से कुण्डलिया (Kundalia) शुरू होता है, उसी शब्द से ही समाप्त भी होता है।
उदाहरण -
गुनके गाहक सहस नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा-कोकिला शब्द सुनै सब कोय।
शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इक रंग काग सब गनै अपावन॥
कह गिरधर कविराय सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय सहस नर गाहक गुनके॥
रोला (Rola) चौबीस मात्राओं वाला छन्द है। ग्यारह और तेरह मात्राओं पर यति होती है।
उदाहरण -
शशि बिन सूनी रैन, ज्ञान बिन हिरदय सूनो।
घर सूनो बिन पुत्र, पत्र बिन तरुवर सूनो।
गज सूनो इक दन्त, और वन पुहुप विहूनो।
द्विज सूनो बिन वेद, ललित बिन सायर सूनो॥
कुण्डलिया (Hindi Poetry - Kundalia)
कुण्डलिया (Kundalia) छः चरणों का छन्द होता है जो एक दोहा और दो रोला को मिलाकर बनता है। दोहे का चौथा चरण पहले रोले का पहला चरण होता है। जिस शब्द से कुण्डलिया (Kundalia) शुरू होता है, उसी शब्द से ही समाप्त भी होता है।
उदाहरण -
गुनके गाहक सहस नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा-कोकिला शब्द सुनै सब कोय।
शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इक रंग काग सब गनै अपावन॥
कह गिरधर कविराय सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय सहस नर गाहक गुनके॥
रविवार, 14 दिसंबर 2014
सोरठा (Hindi Poetry - Sortha)
सोरठा (Sortha) एक मात्रिक छन्द है। यह एक अर्द्ध सम छन्द है। यह दोहे से ठीक उल्टा होता है क्योंकि इसके पहले तथा तीसरे चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं। पहले तथा तीसरे चरणों के अन्त में तुकान्त तथा गुरु लघु होना अनिवार्य होता है।
उदाहरण -
सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
विहँसे करुनाऐन, चितै जानकी लखन तन॥
उदाहरण -
सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
विहँसे करुनाऐन, चितै जानकी लखन तन॥
दोहा - हिन्दी काव्य के अंग - रस (Hindi Poetry - Doha)
दोहा (Doha) एक मात्रिक छन्द है। यह एक अर्द्ध सम छन्द है तथा इसके पहले तथा तीसरे चरणों में तेरह-तेरह मात्राएँ एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। पहले तथा तीसरे चरणों के अन्त में यति एवं दूसरे तथा चौथे चरणों के अन्त में गुरु लघु होना अनिवार्य होता है।
उदाहरण -
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुन इठलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय॥
उदाहरण -
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुन इठलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय॥
चौपाई - हिन्दी काव्य के अंग - रस (Hindi Poetry - Choupai)
चौपाई एक मात्रिक छन्द है। यह एक सम छन्द है तथा इसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण -
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥
गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥
उदाहरण -
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥
गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥
छन्दों के भेद (Hindi Poetry - Kinds of Chhand)
मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द दो प्रकार के होते हैं - मात्रिक छंद और वर्णिक छन्द
- मात्रिक छंद - मात्राओं की संख्या को ध्यान में रखकर रचे गये छंद मात्रिक छन्द कहलाते हैं।
- वर्णिक छंद - वर्णों की संख्या को ध्यान में रखकर रचे गये छंद वर्णिक छन्द कहलाते हैं।
- सम - जिन छन्दों के चारों चरणों की मात्राएँ या वर्ण एक से होते हैं वे सम कहलाते हैं जैसे चौपाई, इन्द्रबज्रा आदि।
- अर्द्ध सम - जिन छन्दों में पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों में मात्राएँ या वर्ण समान होते हैं वे अर्द्ध सम कहलाते हैं जैसे दोहा, सोरठा आदि।
- विषम - जिन छन्दों में चार से अधिक चरण हों और वे एक समान न हों वे विषम छन्द कहलाते हैं जैसे कुण्डलिया, छप्पय आदि।
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